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Management Kya Hai ? In Hindi

Management Kya Hai hota hai? In Hindi- Characteristics,Scopes,functions and importance.

प्रबंधन (Management) एक संगठन का प्रशासन है, चाहे वह एक व्यवसाय हो, एक लाभ के लिए संगठन, या सरकारी निकाय हो। Management  संगठन की रणनीति स्थापित करने और अपने कर्मचारियों (या स्वयंसेवकों) के प्रयासों को समन्वित करने के लिए उपलब्ध संसाधनों, जैसे कि वित्तीय, प्राकृतिक, तकनीकी और मानव संसाधन जैसे उपलब्ध संसाधनों के आवेदन के माध्यम से अपने उद्देश्यों को पूरा करने की गतिविधियां शामिल हैं। "Management" शब्द उन लोगों को भी संदर्भित कर सकता है जो एक संगठन का Management करते हैं।
"प्रबंधन (Management)  एक बदलते वातावरण में दुर्लभ संसाधनों के कुशल उपयोग के माध्यम से संगठनात्मक उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने की एक समस्या को हल करने की प्रक्रिया है"
DEFINITION
 संगठित जीवन के लिए Management आवश्यक है और सभी प्रकार के management को चलाने के लिए आवश्यक है। Good Management सफल Organisation  की रीढ़ है। जीवन को प्रबंधित करने का अर्थ है, जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाना और किसी संगठन के  management करने का अर्थ है अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अन्य लोगों के साथ और उनके माध्यम से किया जाना।
बड़े संगठनों में आमतौर पर प्रबंधकों के तीन स्तर होते हैं, जो आमतौर पर एक पदानुक्रमित, पिरामिड संरचना में आयोजित किए जाते हैं:
  • Senior Managers (वरिष्ठ प्रबंधक), जैसे निदेशक मंडल के सदस्य और एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) या किसी संगठन के अध्यक्ष। वे संगठन के रणनीतिक लक्ष्यों को निर्धारित करते हैं और निर्णय लेते हैं कि समग्र संगठन कैसे काम करेगा। वरिष्ठ प्रबंधक आम तौर पर कार्यकारी स्तर के पेशेवर होते हैं, और मध्य management को दिशा प्रदान करते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें रिपोर्ट करते हैं।
  • Middle Managers (मध्य प्रबंधकों), इसके उदाहरणों में शाखा प्रबंधक, क्षेत्रीय प्रबंधक, विभाग प्रबंधक और अनुभाग प्रबंधक शामिल होंगे, जो फ्रंट-लाइन प्रबंधकों को दिशा प्रदान करते हैं। मध्य प्रबंधक फ्रंट लाइन प्रबंधकों के लिए वरिष्ठ management  के रणनीतिक लक्ष्यों का संचार करते हैं।
  • Lower Management (निचले प्रबंधक), जैसे पर्यवेक्षक और फ्रंट-लाइन टीम के नेता, नियमित कर्मचारियों (या स्वयंसेवकों, कुछ स्वयंसेवी संगठनों में) के काम की देखरेख करते हैं और अपने काम पर दिशा प्रदान करते हैं।

प्रबन्ध की विशेषताएँ (Characteristics of Management):

परिभाषाओं के आधार पर प्रबन्ध की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई जा सकती हैं:

1. प्रबन्ध, एक प्रक्रिया (Management, a Process):
प्रबन्ध एक निरन्तर रूप से चलने वाली प्रक्रिया है । यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहती है जब तक कि निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो जाती है इस प्रक्रिया का संचालन प्रबन्धक द्वारा किया जाता है ।

2. प्रबन्ध, एक व्यवसाय (Management, a Profession):
प्रबन्ध के लिये विशिष्ट ज्ञान (Specialized Knowledge) का होना परमावश्यक है । विशिष्ट ज्ञान की प्राप्ति अथक् परिश्रम के बाद ही सम्भव है । प्रबन्ध में एक व्यवसाय की सभी विशेषताएँ पाई जाती हैं । सभी विकसित देशों में प्रबन्ध एक व्यवसाय के रूप में विकसित हो रहा है प्रबन्धकों को पेशेवर के रूप में विकसित करने के लिये ‘प्रबन्धकीय शिक्षा संस्थान व पाठ्‌यक्रम’ चलाये जा रहे हैं ।

3. प्रबन्ध, एक मानवीय क्रिया (Management, a Human Activity):
प्रबन्ध एक मानवीय क्रिया है क्योंकि किसी भी उपक्रम में नियोजन, संगठन, अभिप्रेरण, निदेशन, नियन्त्रण एवं समन्वय आदि समस्त क्रियाएँ मानवीय क्रियाएँ हैं । इन क्रियाओं के बिना प्रबन्ध का संचालन सम्भव नहीं है ।

4. प्रबन्ध, एक सामाजिक प्रक्रिया (Management, a Social Process):
प्रबन्ध एक मानवीय प्रक्रिया है और मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । प्रकश द्वारा मानवीय क्रियाओं को ही निर्देशित, नियन्त्रित एवं समन्वित किया जाता है ।

5. प्रबन्ध, एक सामाजिक उत्तरदायित्व (Management, a Social Responsibility):
प्रबन्ध असंख्य कर्मचारियों के माध्यम से समाज के उपभोग के लिये आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं का निर्माण करता है । प्रबन्धक को चाहिए कि वह ऐसी वस्तुओं का उत्पादन कराये जो समाज के लिय उपयोगी हो तथा समाज को उचित मूल्यों पर प्राप्त हो सके ।

6. प्रबन्ध एक सार्वभौमिक किया (Management, a Universal Activity):
प्रबन्ध की प्रक्रिया किसी एक देश या किसी एक क्षेत्र में नहीं वरन् प्रत्येक देश में पाई जाती है । प्रत्येक संगठन चाहे वह आर्थिक हो या गैर-आर्थिक, उसका प्रमुख आधार प्रबन्ध ही होता है । अन्य शब्दों में- प्रबन्ध के बिना किसी भी संगठन का संचालन सम्भव नहीं है ।

7. प्रबन्ध, कला एवं विज्ञान दोनों (Management, An Art as well as a Science):
प्रबन्ध में कला के साथ-साथ विज्ञान की भी विशेषताएँ पाई जाती हैं । प्रबन्धकीय कला एक व्यक्तिगत कला है जिसे सहज अनुभूति एवं अन्तर्ज्ञान के आधार पर प्राप्त किया जाता है इसके अतिरिक्त प्रबन्ध में वैज्ञानिक तरीके भी अपनाए जाते हैं । वैज्ञानिक प्रबन्ध में निर्णय केवल अन्तर्ज्ञान पर आधारित नहीं होते हैं वरन् धैर्यपूर्वक वैज्ञानिक अनुसन्धान का फल होते हैं किन्तु इसे प्राकृतिक विज्ञानों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है 

प्रबन्ध का क्षेत्र  (Scope of Management):

वर्तमान में प्रबन्ध शब्द का अर्थ अत्यन्त गहन एवं व्यापक है । प्रबन्ध का कार्य-क्षेत्र नीति-निर्धारण या नीति कार्यान्वयन तक ही सीमित नहीं है वरन् भौतिक व मानवीय संसाधनों (Resources) का उपयोग करना भी प्रबन्ध के अन्तर्गत आता है । इसके अतिरिक्त, संगठन की संरचना करना भी प्रबन्ध कहलाता है ।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि नीति-निर्धारण, नियोजन, संगठन, नीतियों का क्रियान्वयन एवं भौतिक व मानवीय संसाधनों का उपयोग आदि सभी प्रबन्ध के क्षेत्राधिकार में आते हैं । प्रबन्ध में सार्वभौमिकता का तत्व निहित होने के कारण इसके कार्य-क्षेत्र को किन्हीं सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता है ।

आधुनिक समय में प्रबन्ध का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत होने के कारण कार्यों के आधार पर इसे विभिन्न शाखाओं (Branches) में विभक्त कर दिया गया है, जैसे- उत्पादन-प्रबन्ध (Production Management), रख-रखाव प्रबन्ध (Maintenance Management), कार्यालय प्रबन्ध (Office Management), वितरण प्रबन्ध (Financial Management), क्रय प्रबन्ध (Purchasing Management), वित्तीय प्रबन्ध (Financial Management), कार्मिक प्रबन्ध (Personnel Management) तथा विकास प्रबन्ध (Development Management) आदि । इस प्रकार प्रबन्ध का कार्य क्षेत्र इतना व्यापक हो गया है कि आज मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र प्रबन्ध से अछूता नहीं रह गया है । यही कारण है कि प्रो. न्यूमैन ने प्रबन्ध को एक सामाजिक प्रक्रिया बताया है ।

प्रबन्ध के कार्य (Functions of Management):

प्रबन्ध एक विकासशील अवधारणा है । प्रारम्भ में प्रबन्ध का अर्थ बहुत सीमित रूप में लिया जाता था । वर्तमान में इसका व्यापक प्रसार हो चुका है तथा भविष्य में इसके विकास की और अधिक सम्भावनाएँ हैं ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रबन्ध के कार्यों की व्याख्या निम्नलिखित रूपों में की जा सकती है:

1. नियोजन (Planning):
किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उसकी योजना बनाना आवश्यक है । नियोजन के द्वारा लक्ष्य प्राप्ति की कार्यविधियाँ की जाती हैं । अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन योजनाओं के द्वारा एक निश्चित समय में लक्ष्य प्राप्ति का दृढ़ निश्चय किया जाता है ।

2. संगठन (Organization):
संगठन के अन्तर्गत स्थितियों, अधिकारों एवं दायित्वों का निर्धारण करना सम्मिलित है । यह निश्चित किया जाता है कि अमुक कार्य एवं परिस्थिति के लिये अमुक व्यक्ति उपयोगी होगा ।

3. अभिप्रेरण (Motivation):
इसके अन्तर्गत कर्मचारियों का चयन किया जाता है तथा उन्हें आवश्यक निर्देश दिये जाते हैं । संचार व्यवस्था के द्वारा नीतियों, योजनाओं, निर्णयों आदि की जानकारी दी जाती है । एक अच्छे नेतृत्व के माध्यम से मनोबल बढ़ाने एवं कार्य के प्रति उत्साह बढ़ाने के प्रयास की जाते हैं ।

4. निर्देश देना (Directing):
प्रबन्ध को निर्देश के लिये भी तत्पर रहना चाहिये जिससे कि श्रम, पूँजी व समय के दुरुपयोग को रोका जा सके । निदेशन के द्वारा ही निर्णय को क्रिया में परिणत किया जाता है तथा समूह को प्रेरणात्मक शक्ति प्रदान की जाती है ।

5. नियन्त्रण (Control):
नियन्त्रण के द्वारा कार्यों के प्रमाप निश्चित किये जाते हैं । योजनाबद्ध मार्ग से विचलन (Deviation) होने पर सुधारवादी कार्यक्रम या उपचारों को अपनाता है ।

6. नियुक्ति करना (Staffing):
प्रबन्ध का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य कर्मचारियों की नियुक्ति करना है । कार्मिकों की सहायता से ही संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव हो सकती है ।

7. समन्वय (Co-Ordination):
कार्यों में सन्तुलन तथा समय की एकता को स्थापित करना समन्वय कहलाता है । इसके अतिरिक्त, अधिकारियों व कर्मचारियों के मध्य भी सम्बन्ध समन्वयपूर्ण होने चाहिये ।

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